Swati Sharma

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लेखनी कहानी -18-Jun-2022 :- श्रीकृष्ण का चरित्र चित्रण- भाग २ (माखन चोर):-

श्रीकृष्ण का चरित्र चित्रण- भाग २ (माखन चोर):-


                          एक बेहद ही हास्यास्पद वाक्या मेरे समक्ष आया। जब मैंने दो मित्रों को आपस में झगड़ते हुए देखा एवं सुना। दोनों ही काफ़ी जागरूक, समझदार, सभ्य एवं शिक्षित लग रहे थे। जब दो समझदार, समकक्ष व्यक्ति वार्तालाप करें तो देखने एवं सुनने का आनंद ही कुछ और होता है। दोनों के मध्य एक बात को लेकर जमकर बहस हो रही थी। चूंकि दोनों ही सभ्य थे, तो ज़ाहिर सी बात है कि दोनों ही शब्दों को मक्खन की भांति लपेट- लपेट कर एक दूसरे की ओर समर्पित कर रहे थे। दोनों के मध्य एक ही विषय को लेकर लगातार चर्चा चल रही थी। एक मित्र दूसरे को समझा रहा था कि किसी और की प्रतिभा को चुराकर यूं सबके समक्ष प्रस्तुत करना कोई बड़ा हुनर नहीं है।
                          हुनर तो वह है, जब आप स्वयं की प्रतिभा को उजागर करें। दूसरे से जब बात संभलती नज़र नहीं आई, तो उसने वही किया जो अक्सर लोग करते हैं। हम सभी के चहेते श्रीकृष्ण को मध्य लाने का कार्य। उसने इतराते हुए कहा- "हम तो भई उनके शिष्य हैं जो विश्व में माखन चोर के नाम से प्रसिद्ध हैं। जब हमारे गुरु माखन चोर तो हम भला क्यों कर सुधरे हुए हो सकते हैं !?! जब श्रीकृष्ण के घर भंडार भरे होने पर भी वे दूसरों के घर से माखन चुराते थे तो यदि हम दूसरों की प्रतिभा थोड़ी सी "कॉपी पेस्ट" कर भी देते हैं, तो उसमें क्या बुरा है?"
                          दोनों ही की वार्तालाप सुनकर एक बुज़ुर्ग अनुभवी व्यक्ति जो कि बड़ी देर से मेरी ही भांति दोनों की चर्चाओं का आनंद ले रहे थे, बोले - "क्षमा चाहूंगा परन्तु क्या मैं कुछ बोल सकता हूं?" दोनों ने हांमी भर दी। वे सज्जन बोले- "जो भी आपने श्रीकृष्ण के बारे में कहा यह सब बातें उचित हैं। परन्तु आप शायद उनके विषय में ज़्यादा जानते नहीं हैं। यह सत्य है कि वे माखन चोर के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह भी सत्य है कि उनके घर में किसी चीज़ की नहीं थी, फ़िर भी वे माखन चुराते थे। परन्तु शायद आप यह नहीं जानते कि वे जो भी करते थे स्वयं से पूर्व दूसरों के हित के बारे में सोचकर करते थे। अर्थात् यदि माखन चुराते तो पहले स्वयं से पूर्व अपने मित्रों एवं सहयोगियों को खिलाते थे। अक्सर एवं अधिकतर ऐसा होता था कि वे माखन तो चुराते, परन्तु स्वयं उसका भोग भी नहीं लगा पाते थे। अतः उनकी आड़ लेना उचित नहीं। प्रतिभा स्वयं कि ही निखारनी चाहिए।" 
                          मुस्कुराते हुए वे सज्जन वहां से प्रस्थान कर गए। एवं दोनों मित्रों को उनका तात्पर्य समझ आ गया। सच ही है, श्रीकृष्ण के नाम पर बिना सोचे समझे, बिना जाने, बिना देखे भाले बोलने वाले व्यक्तियों की कमी नहीं है। कर्म स्वयं के होते हैं, दोष दूसरों पर लगाते हैं। यह बात हम सभी को भली प्रकार से समझनी चाहिए कि श्रीकृष्ण से हमारी क्या होड़? वे मायापती, इसी प्रकार माया रचते हैं और नासमझ, नादान लोग उसमें फंसते चले जाते हैं। हमें इस प्रकार की सोच से सदैव स्वयं को मुक्त रखना चाहिए, एवं स्वयं की प्रतिभा खोजकर उसका उचित प्रयोग करना चाहिए। ना कि किसी की देखा देखी में आकर अपनी प्रतिभा को नष्ट करना चाहिए।

~राह दे कृष्ण।
~राधे‌‌ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽ कृष्ण।।
~स्वाति शर्मा (भूमिका)

#नॉन स्टॉप 2022

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7 Comments

Radhika

05-Feb-2023 07:42 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

22-Jun-2022 12:03 PM

बहुत खूबसूरत

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Swati Sharma

22-Jun-2022 10:33 PM

आपका हार्दिक आभार

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Pallavi

19-Jun-2022 09:52 AM

Nice post 😊

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Swati Sharma

21-Jun-2022 02:11 PM

Thank you 😊

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